सम्माननीय मित्रों, सादर नमस्कार। विश्व भाषा अकादमी (रजि.) की राजस्थान इकाई के अध्यक्ष द्वारा लघुकथाओं पर शोध कार्य किया जा रहा है। इनमें से एक शोध 'कमज़ोर लघुकथाओं' पर पिछले वर्ष प्रारम्भ किया गया था। उस समय 40 लघुकथाकारों द्वारा अपनी कमज़ोर लघुकथा और उस पर लेखकीय वक्तव्य प्राप्त हुआ और उन पर एक शोध पत्र भी लिख लिया गया है। अब विश्व भाषा अकादमी (रजि.) द्वारा इस कार्य को आगे बढ़ाया जा रहा है। इसे एक ई-पुस्तक का रूप देने का प्रयास है। पूर्व के अतिरिक्त अन्य लघुकथाकार भी इस कार्य में जुड़ना चाहें तो स्वागत है। यह प्रयास कुछ इस प्रकार हैः 1. 'मेरी कमज़ोर लघुकथा' नामक यह योजना वरिष्ठ तथा नवोदित दोनों के लिए ही है। 2. इस कार्य में लघुकथा लेखकों से उनकी स्वयं की एक ऐसी रचना देने का निवेदन है जो उनके अनुसार लघुकथा के किसी न किसी (एक अथवा अधिक) पक्ष/पक्षों में कमज़ोर है और जिसे उसी (उन्हीं) कमज़ोरी (कमज़ोरियों) की वजह से प्रकाशित होने नहीं भेजा। उस रचना विशेष को किस वर्ष में लिखने का प्रयास किया गया, यह भी साथ में देवें। 3. रचना के साथ लेखक से एक वक्तव्य भी लिख कर देने का निवेदन है, ज
अभी मात्र एक आलेख पढ़ा। मैं देर रात या भोर वेला कुछ नहीं पढ़ता, लेकिन इस आलेख पर नजर पड़ी तो तो अपने को रोक नहीं पाया। बहुत ही सार्थक और विवेचनीय आलेख।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।इसे एक बार नहीं कई बार पढ़ने की जरूरत है।
हार्दिक आभार सर.
Deleteबहुत सराहनीय,मौलिक व सटीक प्रयास।रचनाओं की दौड़ के बीच ऐसा विश्लेषण एक सच्चे रचनाकार के मार्ग को निर्देशित करेगा पूर्ण विश्वास है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका.
Deleteभाई चंद्रेश जी, यदि आप मुझे इसकी टेक्स्ट/वर्ड फ़ाइल उपलध करवा दें तो इसे पुस्तक रूप में प्रकाशित करने पर विचार किया जा सकता है.
ReplyDeleteजी ज़रूर सर.
Deleteबेहतरीन प्रयास । एक रचनाकार अगर स्वयं के सृजन को आलोचक,समालोचक या समीक्षक की दृष्टि से देखे तो बहुत सी भ्रांतियों का निवारण सँभव है। यह एक सफल प्रयोग कहा जा सकता है। बधाई तो बनती है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका.
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